उपवन नहीं रहा कि वो मधुबन नहीं रहा

उपवन नहीं रहा कि वो मधुबन नहीं रहा पौधों के रुख़ पे अब वो हरापन नहीं रहा   मौसम की इस बदलती-सी फ़ितरत को क्या कहें गंगा का जल भी पहले-सा पावन नहीं रहा   तुलसी कहाँ उगाएँ कि दीपक कहाँ धरें पक्के मकान में तो वो आँगन नहीं रहा   जब से गिरोहबन्द हुई … Continue reading उपवन नहीं रहा कि वो मधुबन नहीं रहा